वायरस और एंटीवायरस ये दो नाम अक्सर हमें सुनने को मिलते। ये दो ऐसे नाम है जो इंटरनेट और कंप्यूटर की दुनिया में सबसे ज्यादा पॉपुलर है। लेकिन दोनों एक दूसरे का उल्टा है, कैसे आइए जानते है।
इस आर्टिकल में हम एंटीवायरस के बारे में बात करेंगे। जिस तरह से आपके शरीर पर कोई वायरस लग जाता है तो उसे हटाने के लिए आप डॉक्टर की सलाह से दवाई लेते है ताकि आपको शरीर ठीक हो जाए। उसी तरह से एंटीवायरस कंप्यूटर में लगे वायरस को हटाने का काम करता है, ताकि आपका कंप्यूटर ठीक हो जाए और सही से काम कर सके।
एंटीवायरस या एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर (संक्षिप्त में AV सॉफ़्टवेयर भी कहते है), जिसे Antimalware के रूप में भी जाना जाता है, एक कंप्यूटर प्रोग्राम है जिसका उपयोग मैलवेयर, स्पाईवेयर या कंप्यूटर वायरस को रोकने, पता लगाने और हटाने के लिए किया जाता है।
अब मॉडर्न एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर यूजर को मालिसियस ब्राउज़र हेल्पर ऑब्जेक्ट (BHO), ब्राउज़र हिजैकेर्स, रैंसमवेयर, कीलॉगर्स, बैकडोर, रूटकिट्स, ट्रोजन हॉर्स, वर्म्स, मालिसियस LSP, डायलर, धोखाधड़ी टूल्स, एडवेयर और स्पाइवेयर से भी बचा सकता है।
कुछ एंटीवायरस में दूसरे कंप्यूटर खतरों से बचाने की सुरक्षा भी शामिल है, जैसे इन्फेक्टेड और मालिसियस URL, स्पैम, स्कैम और फ़िशिंग हमले, ऑनलाइन प्राइवेसी डिटेक्शन, ऑनलाइन बैंकिंग हमले, बॉटनेट, DDoS हमले, इत्यादि।
सबसे पहले एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर का अविष्कार Andreas Lüning और Kai Figge ने 1987 में किया था जो की Atari ST प्लेटफार्म के लिए था। ये दोनों जर्मन आविष्कारक ही G Data Software (एक जर्मन सॉफ्टवेयर कंपनी है जो कंप्यूटर सुरक्षा पर काम करती है) के फाउंडर भी थे।
एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर असल में क्या काम करने के लिए बनाया गया है?
अब तक इतना समझ गए होंगे की एंटीवायरस भी एक तरह का सॉफ्टवेयर ही होता है और वायरस भी, जिसे प्रोग्रामर कोडिंग कर के तैयार करते है।
हम एक प्रोग्राम के बारे में बात कर रहे हैं जिसका उद्देश्य कंप्यूटर वायरस और दूसरे मालिसियस सॉफ़्टवेयर को स्कैन करना और हटाना है, जिन्हें मैलवेयर भी कहा जाता है। एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर आपकी ऑनलाइन और कंप्यूटर सिक्योरिटी का एक इम्पोर्टेन्ट हिस्सा है, जो डेटा और सिक्योरिटी टूटने के साथ-साथ दूसरे खतरों से भी बचता है।
वायरस को एक कंप्यूटर या एक डिवाइस से दूसरे में जाने, खुद को कॉपी करने और मालिसियस कोड या प्रोग्राम को फैलाने के लिए बनाया जाता है जो आपके ऑपरेटिंग सिस्टम या उसमे इनस्टॉल सॉफ्टवेयर को नुकसान पहुंचा सकता हैं। वायरस साइबर क्रिमिनल को आपके डिवाइस का एक्सेस देने के लिए बनाया जाता हैं। जैसे की हाल ही में RIBD Virus (.ribd Ransomware वायरस) आया है जो फिलो एन्क्रिप्ट करदेता है।
ये वायरस, स्पाइवेयर और दूसरे मालिसियस सॉफ़्टवेयर मैलवेयर कहलाते हैं और इन्हें आपके कंप्यूटर या डिवाइस में बिना आपको पता चले इंस्टॉल कर दिया जाता है। मैलवेयर आपके डिवाइस के क्रैश होने से लेकर आपकी ऑनलाइन गतिविधि की निगरानी या कंट्रोल करने तक सब कुछ कर सकता है।
एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर हमें इस प्रकार के खतरों से सुरक्षित रखता है उसके लिए निचे दिए हुए टास्क करता है:
- मालिसियस सॉफ़्टवेयर का पता लगा के उस स्पेसिफिक फ़ाइलों को बताता है।
- समय समय पर अपने आप सिस्टम को स्कैन करता है।
- मालिसियस कोड और सॉफ्टवेयर हटाता है।
- अपने कंप्यूटर और दूसरे डिवाइस की सुरक्षा की को वेरीफाई करता है।
एंटीवायरस सॉफ्टवेयर कैसे काम करता है?
एंटीवायरस सबसे पहले कंप्यूटर को स्कैन करता है और फिर वायरस या मैलवेयर मिलते ही उसे सिस्टम से हटा देता है। लेकिन एंटीवायरस को कैसे पता चलता है जो फाइल वो हटा रहा है वो वायरस ही है कोई और फाइल नहीं है?
एंटीवायरस सॉफ्टवेयर में पहले से कुछ फाइले होती जिसमे वायरस, स्पाईवेयर और मैलवेयर की जानकारी होती है। उस फाइल में कोड की जानकारी बताई होती की किस तरह का कोड वायरस हो सकता है। इन फाइलो को वायरस सिग्नेचर फाइल या वायरस डेफिनिशन फाइल के नाम से भी जाना जाता है।
बिना इन फाइलो के एंटीवायरस भी ये पता नहीं लगा पाएगा की कंप्यूटर में कोई वायरस है या नहीं। क्यों की वायरस डेफिनिशन फाइल में सभी वायरस की जानकारी होती है।
अगर कोई नया वायरस लांच होता है और एंटीवायरस अपडेट नहीं है तो वो उस नए वायरस पहचान नहीं पाएगा क्यूंकि एंटीवायरस के डेटाबेस अपडेट नहीं है। इसीलिए हर बार एंटीवायरस को अपडेट करने के लिए कहा जाता है।
जब एंटीवायरस कंप्यूटर को स्कैन करता है तब वो हर एक फाइल के कोड को चेक करता है और उनके बिहेवियर को भी चेक करता है। जब उसे कोई फाइल नार्मल नहीं लगती या उसकी हरकते कंप्यूटर के लिए नार्मल नहीं होती है तो एंटीवायरस उस फाइल को ब्लॉक कर देता है और आपको वार्निंग दिखाता है। ताकि आप ये तय कर सके की उस फाइल को रखना है या हटाना है।
एंटीवायरस किन किन तरीकों से वायरस और मैलवेयर का पता लगाता है?
पिछले कुछ सालो में कई प्रकार के एंटीवायरस प्रोग्राम डवलप हुए हैं। कंप्यूटर सिक्योरिटी में एंटीवायरस का रोल बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है।
- Signature Based Malware Detection
सिग्नेचर बेस्ड मालवेयर डिटेक्शन में एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर मैलवेयर सिग्नेचर का पता लगाता है, जिसे मालिसियस सॉफ़्टवेयर के डिजिटल फ़िंगरप्रिंट भी कहते हैं। एंटीवायरस सुरक्षा के लिए स्पेसिफिक मालिसियस कोड को स्कैन करता है, फिर स्पेसिफिक वायरस की पहचान करता है और इन प्रोग्रामों को डिसएबल करता है।
मैलवेयर सिग्नेचर उन वायरस का पता लगा कर उसे खत्म कर देता है जिनके बारे में पहले से पता होता है, इसकी बस एक कमजोरी है कि ये नए वायरस को नहीं ढूंढ पता है, क्यूंकि नए वायरस के सिग्नेचर (जानकारी) इसके डेटाबेस में नहीं होती है। हालाँकि ये काफी पुराना तरीका है।
यानि की आपके कंप्यूटर में जितनी फाइल होती है उनके प्रोग्राम कोड को स्कैन किया जाता है और अगर वो डेटाबेस के किसी वायरस या मैलवेयर कोड से मैच हो जाती तो एंटीवायरस उसे डिटेक्ट कर लेता है और फिर एक वायरस के रूप में उसे दिखाता है।
- Heuristic Based Malware Detection
हेयरिस्टिक एनालिसिस एक ऐसा तरीका है जिसमे वायरस का पता लगाने के लिए उस कोड का पता लगाया जाता है जिस पर शक होता है। ये एक ऐसा तरीका जिसका इस्तेमाल करके पुराने और नए दोनों तरह के वायरस का पता लगाया जाता है।
हेयरिस्टिक एनालिसिस संदेह जनक प्रोग्राम या स्क्रिप्ट को अपने वर्चुअल एनवायरनमेंट में चला कर चेक करता है की उस फाइल का कोड क्या काम करता है। तब ये उस प्रोग्राम के एक्सीक्यूट होते ही सभी कमांड को मॉनिटर करता है, जैसे की खुद की कॉपी बनाना, फ़ाइल ओवरराइट, और देखता है की कही ये फाइल अपने आप को छुपाने की कोशिश तो नहीं कर रही है। अगर इनमे से किसी भी एक्टिविटी का पता चलता है तो उस फ़ाइल को वायरस के रूप में फ़्लैग कर देता है, और यूजर को अलर्ट दिखाता है एक सस्पीशियस फाइल मिली है।
अगर सोर्स कोड का 1% भी वायरस या वायरस जैसी गतिविधियों से मेल खाता है, तो फ़ाइल को फ़्लैग करके यूजर को अलर्ट करता है।
हालाँकि, हेयरिस्टिक एनालिसिस संदेह जनक फ़ाइल की तुलना पहले के वायरस के कोड और कार्यों से करता है और एक्सपीरियंस के आधार पर वायरस का पता लगाता है।
इसका मतलब ये है कि जो वायरस पुराने वायरस की तरह काम नहीं करेगा उसे ये नहीं ढूंढ पाएगा जैसे की रैंसमवेयर और .ribd Ransomware वायरस।
- Behavioral Based Malware Detection
जैसा कि इसके नाम से पता चलता है की ये वायरस या मैलवेयर को उसके बेहेवियर के जरिये ढूंढ कर हटा देता है या ब्लॉक कर देता है।
ये लगातार हमारे कंप्यूटर के बैकग्राउंड में सभी एप्लीकेशन, सॉफ्टवेयर और स्क्रिप्ट को चेक करता रहता है और जैसे ही इसको कोई भी ऐसी फाइल या सॉफ्टवेयर मिलता जो कंप्यूटर को नुकसान पहुँचाना चाहता है ये उसे ब्लॉक करके फ्लैग कर देता है और यूजर को अलर्ट दिखाता है।
बूट फाइल को मॉडिफाई करना, सिस्टम फाइल को डिलीट या कर्रप्ट करना, मालिसियस फाइल को इनस्टॉल करना, इत्यादि जैसी एक्टिविटी को मॉनिटर करता है।
इसके दूसरे भी फायदे है, बिहेवियर बेस्ड डिटेक्शन टेक्नोलॉजी फ़ाइललेस्स जैसे मैलवेयर का पता लगाके उनसे बबचाता है। फ़ाइललेस्स मैलवेयर जो किसी भी फाइल या सॉफ्टवेयर में नहीं होता है, इस तरह के मैलवेयर को उसकी एक्टिविटी के जरिये ही ढूंढा जाता है।
- Sandbox Malware Detection
सैंडबॉक्स मालवेयर डिटेक्शन भी लगभग बिहेवियर बेस्ड मैलवेयर डिटेक्शन की तरह ही काम करता है।
सैंडबॉक्स मालवेयर डिटेक्शन के लिए एक सिस्टम है जो पूरी तरह से फीचर्ड OS के साथ वर्चुअल मशीन (VM) में सस्पीशियस फाइल या स्क्रिप्ट को चलाता है और उनके बेहेवियर को एनालाइज करके आइटम की मालिसियस एक्टिविटी का पता लगाता है।
अगर वो आइटम किसी VM में मालिसियस काम करता है, तो सैंडबॉक्स इसे एक मैलवेयर डिटेक्ट करता है। VM को इस तरह से बनाया होता है की कोई भी एक्टिविटी जो उसके अंदर होती है आपके सिस्टम को हानि नहीं पंहुचा सकती है।
- Machine Learning Antivirus
मशीन लर्निंग तकनीक, जो “नार्मल” कंप्यूटर या नेटवर्क के बिहेवियर को मॉनिटर करता है। मशीन लर्निंग के जरिए एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम या कंप्यूटर द्वारा एक्टिविटी, जो संदेह जनक लगती है उसे ब्लॉक कर देता।
एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर हमें किससे बचाने में मदद करता है?
हैकर्स मैलवेयर को हमारी जानकारी के बिना कंप्यूटर का एक्सेस पाने या उसे नुकसान पहुंचाने के लिए बनाते है। कई अलग-अलग प्रकार के मालिसियस कोड या “मैलवेयर” की जानकारी होना जरुरी है, जिससे बचाने के लिए एंटीवायरस सॉफ़्टवेयर को डिज़ाइन किया गया है, जैसे की:
- Spyware: ये हमारी सिस्टम की निगरानी और संवेदनशील जानकारी की चोरी करता है।
- Ransomware: ये जबरजस्ती हमसे पेसो की वसूली करता।
- Viruses: ये सिस्टम को नुकसान पहुँचता है।
- Worms: ये एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर में कोड या स्क्रिप्ट को फैलाता है और उन्हें इन्फेक्ट करता है।
- Trojans: ये बोलते कुछ है और करते कुछ है।
- Adware: ये बिना मतलब के ब्राउज़र या कंप्यूटर में विज्ञापन दिखते है।
- Spam: बिना कारण ही कई सरे ईमेल भेजते है।
एंटीवायरस के रूप में क्या विंडोज डिफेंडर काफी है?
अब आप सोच रहे होंगे की विंडोज डिफेंडर तो पहले से ही इनस्टॉल आता है तो किसी दूसरे एंटीवायरस की हमें क्या जरूरत।
विंडोज 8 के शुरु से, विंडोज में इनबिल्ट एंटीवायरस प्रोटेक्शनआ रहा है जिसे विंडोज डिफेंडर के नाम से जानते है जो कि पहले इनस्टॉल होता है। लेकिन क्या यह काफी है? इसका उत्तर है “शायद” क्योंकि इसकी ये उतना असरदार नहीं है।
उदाहरण के लिए, विंडोज डिफेंडर नार्मल या छोटे वायरस से बचने के लिए काफी सही है। लेकिन आए दिन नए वायरस आते रहते है जिससे बचने के लिए ये काफी नहीं होगा, रैंसमवेयर जैसे घुसपैठ वायरस से आपके डिवाइस को नहीं बचा पाएगा।
क्या हमें Mac और Linux के लिए भी एंटीवायरस की जरुरत है?
मैक और लिनक्स डिवाइस को उतना टारगेट नहीं किया जाता जितना अक्सर विंडोज कंप्यूटर को किया जाता है, फिर भी भविष्य में वायरस या मैलवेयर से बचने के लिए अगर चाहे तो एंटीवायरस का इस्तेमाल कर सकते है।
क्यूंकि अभी तक वायरस विंडोज के लिए ही बनाए गए है। मैक और लिनक्स के यूजर काफी कम है इस लिए ने उनके वायरस या मालवार बनाने में समय बरदाद नहीं किया। क्यूंकि ज्यादार यूजर विंडोज का ही इस्तेमाल करते है, इसीलिए हैकर ने विंडोज यूजर के लिए ही वायरस और मैलवेयर बनाए है।
अगर आप जो भी खोलते या करते है उसमे सावधानी बरतना बहुत जरुरी है जैसे कि अज्ञात लिंक या अटैचमेंट पर क्लिक ना करे, और अपनी ऑनलाइन गतिविधि में सावधानी बरते, जिससे आप सुरक्षित रहेंगे हैं।
वायरस और मैलवेयर में क्या अंतर है?
कंप्यूटर वायरस, फाइल को प्रोग्रामिंग के जरिए खुद की नकल करके उसकी कॉपी करके एक कंप्यूटर से दूसरे कंप्यूटर या डिवाइस में फैला देता है। कंप्यूटर वायरस एक तरह का मैलवेयर ही होता है। कंप्यूटर वायरस क्या होता है? – पूरी जानकारी।
मैलवेयर एक प्रकार का मालिसियस सॉफ्टवेयर होता है जो जो कंप्यूटर को नुकसान या जानकरी को चोरी या निगरानी रखने के लिए बायनय जाता है। मैलवेयर क्या होता है? – पूरी जानकरी।
एंटीवायरस और एंटीमैलवेयर में क्या अंतर है?
एंटीवायरस और एंटीमैलवेयर ये दो ऐसे शब्द है जो अक्सर आपको इंटरनेट पर मिलेंगे। दोनों का काम एक जैसा ही है, लेकिन फिर भी एक दूसरे से अलग है। एंटीमैलवेयर और एंटीवायरस एक नहीं हैं।
दोनों ही मालिसियस सॉफ़्टवेयर का पता लगा के उसे हटाने का काम करते है और हमारे कंप्यूटर की सुरक्षा करते है। साइबर खतरे लगातार पहले से ज्यादा विकसित होते जा रहे हैं।
एंटीवायरस हमें केवल कंप्यूटर वायरस से ही बचाता है, हालाँकि ये हमें कई तरह के मैलवेयर से भी बचाता हैं। लेकिन एंटीवायरस सभी मैलवेयर को नहीं हटा पाता है। इसी लिए हमें एंटीमैलवेयर की जरुरत पड़ी।
एंटीमैलवेयर, मैलवेयर के एडवांस्ड फॉर्म का पता लगाता है, जैसे कि जीरो-डे अटैक। एंटीमैलवेयर सॉफ्टवेयर इन्फेक्शन या मैलवेयर के नए प्रकार का पता लगा कर उसे हटाने का काम करता है।
अगर आप चाहे तो एंटीवायरस और एंटीमैलवेयर दोनों का इस्तेमाल एक साथ कर सकते है।
वायरस और एंटीवायरस में क्या अंतर है?
वायरस मतलब की कंप्यूटर वायरस, ये हमरे कंप्यूटर को नुकसान पहुंचने के लिए होते। हैकर कंप्यूटर को नुकसान पहुँचाने के इरादे इसे बनाते है।
एंटीवायरस इसका एकदम उल्टा है, ये कंप्यूटर में से वायरस को ढूंढ कर उसे हटाने का काम करता है। ये हमरे कंप्यूटर इसतरह के नुकसान पहुंचने वाले कंप्यूटर वायरस वायरस से सुरक्षित रखता है।
सबसे अच्छा एंटीवायरस कौन सा है?
वैसे तो काफी सारे एंटीवायरस लेकिन जिनका इस्तेमाल आप कर सकते है। मैने भी सभी एंटीवायरस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल नहीं किया है। लेकिन फिर भी जो बेस्ट है और जिन पर मुझे भरोसा है उन्ही के बारे में यहाँ पर बताऊंगा।
Best Antivirus:
- Norton 360 और Norton Antivirus (ये दोनों ही नॉर्टन का ही प्रोडक्ट है और इसकी सिक्योरिटी सबसे ज्यादा स्ट्रांग है। इसीलिए इसे मैने लिस्ट में सबसे पहले रखा है।)
- Quick Heal Total Security
- BitDefender
- Kaspersky
- McAfee
हालाँकि इनके अलावा और भी है। अगर चाहे तो यहाँ पर चेक कर सकते है सभी एंटीवायरस की लिस्ट दी हुई उसके फंक्शन के साथ। जिससे आपको ये तय करने में आसानी होगी की कौन सा एंटीवायरस आपके लिए सही रहेगा।
एंटीवायरस सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करने के फायदे:
इसमें कोई शक नहीं की इसके कई फायदे है और हमरे कंप्यूटर में इनस्टॉल होने से उसकी सिक्योरिटी भी बढ़ जाती है।
- ये सभी तरह के वायरस को ढूंढ कर हटाता है और हमारे डिवाइस को बचाता है।
- ये आटोमेटिक कंप्यूटर के बैकग्राउंड में स्कैन करता रहता है और किसी तरह की सस्पीशियस फाइल या स्क्रिप्ट मिलने उसे ब्लॉक या हटा देता है।
- ये डाटा को वायरस से होने वाले नुकसान से बचता है।
- ये इंटरनेट से आने वाले वायरस को रोकता है और सिस्टम को सुरक्षित रखता है।
- कई बार वायरस सिस्टम को हैंग या स्लो कर देते है उन जैसे वायरस को रोकता है और सिस्टम की परफॉरमेंस बनाए रखता है।
- कई वायरस से हुई करप्ट फाइल को भी एंटीवायरस ठीक कर देते है। हालाँकि कुछ ही ऐसा कर पाते है, सभी में ये क्षमता नहीं होती है।
अंत में यही कहूंगा की अगर आपके डिवाइस में कोई एंटीवायरस है तो उसे समय पर या हर महीने एक बार अपडेट जरूर करे। ताकि आपका सिस्टम लम्बे समय तक सही से काम कर सके।
जब भी आप ऑनलाइन कोई काम करते है या किसी भी तरह की एक्टिविटी करते है या ईमेल चेक करते है तो कभी भी किसी आ विश्वसनीय लिंक या फाइल या वेबसाइट पर क्लिक न करे। क्यूंकि कब कहा से कोई वायरस या मैलवेयर अजय हमें नहीं पता होता है।
अगर ये जानकारी आपको अच्छी लगी हो तो इस आर्टिकल को अपने दोस्तों, परिवार जनो और सोशल मीडिया पर जरूर शेयर करे।
मेरा नाम धर्मेंद्र मीणा है, मुझे तकनीक (कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन्स, सॉफ्टवेयर, इंटरनेट, इत्यादि) से सम्बन्धी नया सीखा अच्छा लगता है। जो भी में सीखता हु वो मुझे दुसरो के साथ शेयर करना अच्छा लगता है। इस ब्लॉग को शुरू करने का मेरा मकसद जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक हिंदी में पहुंचना है।
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