क्लाउड कंप्यूटिंग में क्या बादलो में कोई कंप्यूटर है या डाटा बदलो में स्टोर होता है?
जैसा की आप सब जानते है क्लाउड यानी बादल होता है और बादलो का कोई फिक्स आकार नहीं होता है। वे बनते बिगड़ते रहते है और अलग अलग आकार में होते है।
उस ही तरह से टेक्नोलॉजी भी कई सारे यूजर से मिल कर बनती है। इसमें कभी यूजर होते है तो कभी नहीं होते है। इसका भी कोई फिक्स आकार नहीं होता है। इसीलिए इसका नाम क्लाउड कंप्यूटिंग रखा गया है।
ऐसा बिलकुल नहीं है की बादलो में कोई कंप्यूटर है या डाटा बादलो में स्टोर होता है। इससे पहले वाले लेख अपने क्लाउड स्टोरेज के बारे में जाना था। क्लाउड स्टोरेज, क्लाउड कम्प्यूटिंग का ही एक हिस्सा है।
क्लाउड स्टोरेज और क्लाउड कंप्यूटिंग लगभग-लगभग सामान ही है लेकिन फिर भी इनमे काफी अंतर है।
वैसे तो क्लाउड कंप्यूटिंग काफी बड़ा विषय है। फिर भी मैं कोशिश करूँगा की इस लेख में सभी पॉइंट्स कवर हो जाए।
क्लाउड कंप्यूटिंग क्या है?
क्लाउड कंप्यूटिंग एक ऑनलाइन प्रोसेस है जिसका इस्तेमाल इंटरनेट के माध्यम से किया जाता है।
क्लाउड कंप्यूटिंग या मेघ संगणना का इस्तेमाल ज्यादातर बड़ी कम्पनिया करती है। जैसे की गूगल, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, वेब होस्टिंग कम्पनिया, इत्यादि।
क्लाउड कंप्यूटिंग केवल डाटा को ऑनलाइन स्टोर करने में ही काम नहीं आता है, बल्कि इसकी सहायता से सॉफ्टवेयर को ऑनलाइन भी इस्तेमाल कर सकते है, इसके अलावा और भी दूसरे काम कर सकते है।
आसान भाषा में कहु तो वो सभी काम जो आप अपने कंप्यूटर में सॉफ्टवेयर इनस्टॉल करके करते है वो सारा काम ऑनलाइन कर सकते है।
पहले सॉफ्टवेयर को इस्तेमाल करने के लिए आपको उसे अपने कंप्यूटर या लैपटॉप में इनस्टॉल करना होता था तभी उसे काम में ले सकते थे। लेकिन अब क्लाउड कंप्यूटिंग के जरिये सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल ऑनलाइन किया जा सकता है।
जितनी भी ऑनलाइन सर्विस आप इस्तेमाल करते है वो सभी क्लाउड कंप्यूटिंग जरिये ही आप को मिल पाती है।
Pixlr, गूगल ड्राइव, ऑनलाइन फोटोशॉप, ऑनलाइन माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस, Flickr, इत्यादि सभी क्लाउड कंप्यूटिंग के ही उदाहरण है।
ये सारे काम हम क्लाउड कंप्यूटिंग की मदद से कर पाते है:
- नए एप्लीकेशन और सर्विसेस को ऑनलाइन डवलप करना और टेस्ट करना।
- ऑनलाइन डेटा को स्टोर, बैकअप बनाना और रिकवरी करना।
- ब्लॉगस और वेबसाइटस की होस्टिंग।
- जरुरत के हिसाब से सॉफ्टवेयर को ऑनलाइन इस्तेमाल करने देना।
- ऑनलाइन डेटा की जांच करना।
- स्ट्रीमिंग वीडियो और ऑडियो (वीडियो और ऑडियो को ऑनलाइन इस्तेमाल करना)।
क्लाउड कंप्यूटिंग का इस्तेमाल कौन और क्यों करता है?
आजकल क्लाउड कंप्यूटिंग हर तरफ है। आप जितनी ऑनलाइन सर्विसेस का इस्तेमाल करते है उन सब में क्लाउड कंप्यूटिंग ही काम आता है।
हम सभी रोजाना क्लाउड कंप्यूटिंग का इस्तेमाल करते ही है, ऐसा हो सकता है की शायद आपको इस बारे में पता ना हो। अभी आप इस आर्टिकल को पढ़ रहे है तो ये वेबसाइट भी क्लाउड कंप्यूटिंग का ही एक उदाहरण है।
जब आप कोई ईमेल भेजते है, किसी भी डॉक्यूमेंट को एडिट करते हैं, फिल्में या टीवी देखते हैं, ऑनलाइन संगीत सुनते हैं, ऑनलाइन गेम खेलते हैं या चित्रों और दूसरी फाइलों को ऑनलाइन स्टोर करते हैं, तो आप क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विसेस का ही इस्तेमाल कर रहे होते है।
इसीलिए क्लाउड कंप्यूटिंग इतना पॉपुलर है क्योंकि इसमें कम पैसो में ज्यादा काम हो जाता है और जरूरत के हिसाब से जितना चाहे उतना इस्तेमाल कर सकते है। बल्कि जितना आप इस्तेमाल करते है उतने का ही पैसा देना होता है।
ऐसा जरुरी नहीं है की हर बार क्लाउड कंप्यूटिंग सर्विसेस का इस्तेमाल करने के लिए पैसे ही देने होंगे, काफी सर्विसेस फ्री भी है। फ्री सर्विसेस में गूगल ड्राइव और फोटोज, वन ड्राइव, फेसबुक, फ्लिकर, यूटयूब इत्यादि शामिल है।
क्लाउड सर्विसेस का इस्तेमाल ज्यादातर बड़ी कंपनिया करती है, हालाँकि ये आम लोगो के लिए भी उपलब्ध है। गूगल, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कम्पनिया अपनी क्लाउड सर्विसेस को किराये पर देती है, महीने या फिर सालाना के हिसाब से।
कुछ ऑनलाइन एप्लीकेशन आपके और मेरे जैसे यूजर भी काम में लेते है, जैसे की ईमेल, फेसबुक, फ्लिकर, गूगल ड्राइव, फोटोबकेट, इत्यादि। इसके अलावा और भी काफी ऑनलाइन सर्विस है।
सभी ऑनलाइन सर्विस क्लाउड कंप्यूटिंग ही कहलाती है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर इसलिए किया जाता है क्योंकि ये आसानी से उपलब्ध हो जाती है और किसी भी तरह का कंप्यूटर या सॉफ्टवेयर या कोई दूसरी मशीन खरीदनी नहीं पड़ती है।
अगर संक्षेप में कहूँ तो, कोई भी काम जो आप ऑनलाइन करते है वो सभी क्लाउड कंप्यूटिंग के जरिये ही होता है। चैटिंग, ईमेल, ऑनलाइन फोटो एडिटिंग, ऑनलाइन गेम्स, ऑनलाइन एप्प्स, इत्यादि क्लाउड कंप्यूटिंग के उदाहरण है।
इसकी एक खास बात ये भी है की इसे कभी भी, कही से भी, किसी भी डिवाइस के जरिये इस्तेमाल कर सकते है।
क्लाउड कंप्यूटिंग कैसे काम करता है?
क्लाउड सिस्टम कैसे काम करता है ये समझने के लिए, इसे दो भागों में बांटा गया है: फ्रंट एन्ड और बैक एन्ड। ये दोनों ही नेटवर्क के जरिए इंटरनेट का इस्तेमाल करके से एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
फ्रंट एन्ड कंप्यूटर यूजर या क्लाइंट के लिए होता है। फ्रंट एन्ड में सारा काम बटन और ग्राफिकल इंटरफ़ेस के जरिए होता है। उदाहरण के लिए जीमेल, माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस 360, Pixlr जैसी ओर भी कई ऑनलाइन एप्लीकेशन है।
बैक एन्ड में वर्चुअलाइजेशन टेक्नोलॉजी के जरिए क्लाउड कंप्यूटिंग का काम आसानी से हो जाता है। ये डिजिटली एक नकली कंप्यूटर सिस्टम तैयार करता है जो बिलकुल फिजिकल कंप्यूटर की तरह ही काम करता है।
वर्चुअलाइजेशन टेक्नोलॉजी एक ही होस्ट में कई वर्चुअल मशीने बना देती है। जो की सैंडबॉक्स की मदद से एक दूसरे से बिलकुल अलग रहते है और आपस में इनका कोई कांटेक्ट नहीं होता और ना ही एक वर्चुअल मशीन दूसरी वर्चुअल मशीन की फाइले और एप्लीकेशन देख सकती है और ना ही इस्तेमाल का सकती है। हालाँकि वो होते एक ही फिजिकल मशीन में है।
वर्चुअल मशीन भी होस्टिंग मशीन के हार्डवेयर का ही इस्तेमाल करती है। एक साथ कई वर्चुअल मशीन चलाने से, एक सर्वर कई सर्वरो में बंट जाते हैं, और एक डेटा सेंटर कई डाटा सेंटर में बंट जाता है, जिससे एक होस्टिंग मशीन कई आर्गेनाइजेशन को अपने सर्विस दे पाती है।
इस तरह से, क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर अपने सर्वरों को एक बार में ज्यादा से ज्यादा कस्टमरो को इस्तेमाल के लिए दे सकता हैं। जिस में कस्टमर और सर्विस प्रोवाइडर दोनों के ही पैसे कमा लगते है।
क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर के एक से अधिक सर्वर होते है, जो अलग अलग जगह में लगे होते है, जिसकी सहायता से वे सभी कस्टमरो के डाटा का बैकअप ले पाता हैं।
अगर इनका कोई एक सर्वर काम नहीं करता या उसमे कोई प्रॉब्लम आ जाती है, तो उस सर्वर का ट्रैफिक अपने बाकि के सर्वर पर भेज देते है। जिससे यूजर को काम करने में परेशानी नहीं होती और सारा काम वे आसानी से कर पाते है।
यूजर क्लाउड सर्विसेस का इस्तेमाल ब्राउज़र या एप्लीकेशन के जरिए कर सकते हैं, जो कि कई इंटरकनेक्टेड नेटवर्क से जुड़े होते है, जिसका इस्तेमाल किसी भी डिवाइस के जरिए कर सकते है।
क्लाउड सर्विसेस को होस्ट करने वाली सबसे बड़ी और फेमस कंपनियां में अमेज़न वेब सर्विसेस (AWS), माइक्रोसॉफ्ट एज़्योर, एप्पल (iCloud), Google Drive और Google Photos जैसे बड़े खिलाड़ी हैं।
जितना भी हैवी लोड वाला काम होता है वो सब बैक एन्ड में क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर देखता है। क्लाउड स्टोरेज से लेकर ऑनलाइन एप्लीकेशन तक, उसे संभालना, उसकी देखरेख करना, सारा काम वो कंपनी (क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर) ही करती है।
क्लाउड कंप्यूटिंग का इतिहास
क्लाउड कंप्यूटिंग के आने से पहले, क्लाइंट और सर्वर कंप्यूटिंग थी जो की मुख्य रूप से एक सेंट्रलाइज्ड स्टोरेज था, जिसमें सभी सॉफ़्टवेयर और एप्लिकेशन, सभी डेटा और सारा कंट्रोल सर्वर साइड पर ही होता था।
अगर कोई सिंगल यूजर डेटा को एक्सेस करना चाहता है या कोई प्रोग्राम चलाना चाहता है, तो उसे सर्वर से कनेक्ट होना होता है और फिर उसे एक्सेस मिल पाता है, और तब वह उस डाटा को एक्सेस कर के अपना काम कर पता है।
सन 1960 में, John McCarthy टाइम-शेयरिंग कॉन्सेप्ट को ले कर आए थे और इसकी शुरुवात बड़ी आर्गेनाइजेशन में महंगी मेनफ्रेम सिस्टम लगा कर की थी। ये कंप्यूटिंग इंटरनेट के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में उभर कर सामने आई है, और तब क्लाउड कंप्यूटिंग के बारे पता चला।
सन 1969 में, “इंटरगैलेक्टिक कंप्यूटर नेटवर्क” या “गैलेक्टिक नेटवर्क” (आज के इंटरनेट के समान कंप्यूटर नेटवर्किंग कॉन्सेप्ट) का विचार J.C.R. Licklider ने पेश किया गया था, जिसने ARPANET (Advanced Research Projects Agency Network) को डवलप किया था। वो चाहते थे पूरी दुनिया आपस में जुडी रहे और कही से भी, किसी भी साइट से प्रोग्राम और डाटा को एक्सेस कर सके। यही से इंटरनेट का जन्म हुआ।
सन 1970 में, VirtualBox और VMware जैसे वर्चुअलाइजेशन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करना शुरू किया गया। इसके जरिए एक से अधिक ऑपरेटिंग सिस्टम को अलग-अलग प्रोग्रामिंग एनवायरनमेंट में एक साथ चला पाना मुमकिन हो जाता है। एक ही ऑपरेटिंग सिस्टम के अंदर पूरी तरह से एक दूसरा कंप्यूटर (वर्चुअल कंप्यूटर) चलाना पाना पॉसिबल हो जाता है।
सन 1999 में, Salesforce.com ने एक सिंपल वेबसाइट के माध्यम से एंटरप्राइज में एप्लीकेशन को डिलीवर करने के कॉन्सेप्ट को आगे बढ़ाया।
सन 2003 में, Xen सबसे पहले पब्लिक के लिए रिलीज़ किया, जो एक वर्चुअल मशीन मॉनीटर (VMM) है जिसको को hypervisor के रूप में भी जाना जाता है, जो एक सॉफ्टवेयर सिस्टम है, जो एक ही मशीन पर एक साथ कई वर्चुअल ऑपरेटिंग सिस्टम को चला सकता है।
सन 2006 में, Amazon ने अपनी क्लाउड सर्विस का विस्तार किया। पहले इसका Elastic Compute Cloud (EC2) था जिसने क्लाउड पर लोगों को कंप्यूटर को एक्सेस करने और उन पर अपनी एप्लिकेशन को चलाने दी। फिर उन्होंने Simple Storage Service (S3) रिलीज़ किया। इसने यूजर और इंडस्ट्रीज दोनों के लिए pay-as-you-go मॉडल के रूप में शुरू किया था, जो की आज की तारीख में आम बात हो गई है।
सन 2014 में, क्लाउड से संबंधित बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर और सर्विसेस के लिए दुनिया भर के व्यापार का खर्च लगभग £103.8 बिलियन तक पहुंच गया था, जो की 2013 में खर्च की गई राशि के मुकाबले 20% ज्यादा है।
क्लाउड कंप्यूटिंग के प्रकार
क्लाउड कंप्यूटिंग दो हिस्सों में बताया गया है। जिसमे से एक इंडस्ट्रीज पर आधारित है और दूसरा सर्विसेस पर आधारित है।
- डिप्लॉयमेंट मॉडल
- बेस्ड ऑन सर्विस
I – Deployment Model (इंडस्ट्री के आधार पर)
डिप्लॉयमेंट मॉडल में ये पता चलेगा की किस तरह की इंडस्ट्रीज या ऑफिस इसका इस्तेमाल करते है।
- प्राइवेट क्लाउड कंप्यूटिंग
प्राइवेट क्लाउड कंप्यूटिंग में सर्वर, डाटा सेंटर, नेटवर्क और बाकी सभी मशीनें केवल किसी एक कंपनी या इंस्टीट्यूट की ही होती है और उसे केवल उस आर्गेनाइजेशन, कंपनी या इंस्टीट्यूट के कर्मचारी या विद्यार्थी ही काम में ले सकते है।
क्योकि उसका एक्सेस और लॉगिन की जानकारी केवल उस कर्मचारी या विद्यार्थी के पास ही होती है। जो उस आर्गेनाइजेशन के जरिए दी जाती है। ये आमतौर पर पब्लिक लिए उपलब्ध नहीं होती है।
इसका रखरखाव वो आर्गेनाइजेशन खुद ही करती है और खर्चा भी बहुत ज्यादा होता है।
- पब्लिक क्लाउड कंप्यूटिंग
पब्लिक क्लाउड कंप्यूटिंग वो होती है जो सब के लिए उपलब्ध हो। इसे कोई भी कही से भी काम में ले सकता है। इसमें प्राइवेट क्लाउड कंप्यूटिंग का उल्टा है।
ये सर्वर, डाटा सेंटर, नेटवर्क, डेटाबेस, बाकि सभी कंप्यूटिंग सर्विसेज को सभी कस्टमर के साथ शेयर करता है। सभी एप्लीकेशन और डेटाबेस पब्लिक के लिए उपलब्ध होते है। इस तरह की सर्विसेज फ्री और पेमेंट करने पर भी मिलती है।
उदाहरण के लिए Amazon (AWS), Google Cloud, Microsoft Azure, इत्यादि शामिल है।
- हाइब्रिड क्लाउड कंप्यूटिंग
हाइब्रिड क्लाउड कंप्यूटिंग जैसा की नाम से मालूम चलता है की ये पब्लिक और प्राइवेट क्लाउड कंप्यूटिंग का मिश्रण है।
इसमें आपको पब्लिक और प्राइवेट क्लाउड दोनों की सुवुधा मिल जाएगी। फिर चाहे कोई IT कम्पनी हो या फिर एक सिंगल यूजर हो दोनों ही इसका इस्तेमाल कर सकते है।
ये कंपनियों और यूजर को पूरी तरह से एक ऑनलाइन क्लाउड कंप्यूटिंग प्लेटफार्म देती है, जिसमे आप चाहे तो ऑनलाइन प्रोग्राम की कोडिंग कर सकते है, किसी भी फाइल या प्रोग्राम को ऑनलाइन सेव कर सकते है, उसे अपडेट कर सकते है।
अगर संक्षेप में कहुँ तो आप वो सारे काम ऑनलाइन कर सकते है जो अपने कंप्यूटर में करते है।
इसमें सबसे बढ़िया बात ये है की इनसब के लिए कोई हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर या किसी भी तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर खरीदने की जरुरत नहीं होती है। इसमें सारा काम ऑनलाइन ही होता है। हैना ये कमाल की बात।
- मल्टीक्लाउड कंप्यूटिंग
मल्टीक्लाउड में कई अलग अलग क्लाउड सर्विसेस को एक ही प्लेटफार्म में इस्तेमाल के लिए एक साथ जोड़ दिया जाता है। ये इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्लेटफ़ॉर्म या सॉफ़्टवेयर की किसी भी तरह की मिक्स सर्विस (IaaS, PaaS या SaaS) हो सकती है।
उदाहरण के लिए, आप एक सर्विस प्रोवाइडर से ईमेल का उपयोग करते है, तो दूसरे से customer relationship management (CRM), और तीसरे से ऑनलाइन प्रोग्रामिंग।
इससे आपको अलग अलग प्लेटफार्म पर लॉगइन नहीं करना पड़ता है। एक ही प्लेटफार्म पर लॉगइन करना होगा और वही से अपना सारा काम कर पाएंगे। इसका सबसे अच्छा उदहारण Zoho और HubSpot है।
- कम्युनिटी क्लाउड कंप्यूटिंग
सामुदायिक क्लाउड कंप्यूटिंग दो या दो से ज्यादा ऑर्गेनाइजेशन के साथ डाटा और रिसोर्सेज को शेयर करता है।
ये दो सरकारी कंपनियों के बीच में हो सकता है, या प्राइवेट कंपनियां आपस में डाटा शेयर कर सकती है। कोई भी दो या दो से ज्यादा कम्पनिया एक कम्युनिटी बना कर अपना डाटा आपस में शेयर कर सकती है।
II – Based On Services (सर्विसेस के आधार पर)
इसके अंतर्गत यह पता चलेगा की किस तरह की सर्विस दी करता है।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर-एस-ए-सर्विस (IaaS) | Infrastructure-as-a-Service (IaaS)
इन्फ्रास्ट्रक्चर-एज़-ए-सर्विस (IaaS) यूजर को एक ऐसा प्लेटफार्म देती है जिसमे उतना ही पेमेंट करना होता है जितना काम में लेते है या जितने की जरुरत होती है।
इसमें IT कंपनियों को अपने खुद की मशीन खरीदने की जरुरत नहीं होती। बल्कि ये गूगल और अमेज़न (AWS) जैसी कंपनियों की मौजूदा क्लाउड सर्विसेस को किराये पर ले कर उनका इस्तेमाल करती है।
इससे आईटी कंपनियों का खर्चा कम होता है और उनका काम भी आसान हो जाता है। वही गूगल और अमेज़न जैसी बड़ी कंपनियों की कमाई हो जाती है।
उदाहरण के लिए ऑनलाइन फाइल स्टोर करना, फाइल शेयर करना, ऑनलाइन वीडियो देखना, गाने सुनना, इत्यादि। ये कंपनियां अपने सर्वर और स्टोरेज को किराये पर देती है। इसके जरिये यूजर जो चाहे वो बना सकता है जैसे की वेबसाइट, एप्लीकेशन या दूसरा कुछ।
Amazon S3, Windows Azure, Rackspace, Google Compute Engine, इत्यादि कंपनियां इस तरह की सर्विसेस प्रोवाइड कराती है।
- प्लेटफॉर्म-एस-ए-सर्विस (PaaS) | Platform-as-a-Service (PaaS)
प्लेटफ़ॉर्म-एज़-ए-सर्विस (PaaS) कंपनियां होस्ट किए गए एप्लीकेशन या पहले बने हुए एप्लीकेशन के लिए पेमेंट नहीं करती हैं। इसके बजाय, वे उन चीजों के लिए पेमेंट करते हैं जिन्हें उन्हें अपने एप्लीकेशनस बनाने की जरुरत होती है।
PaaS वेंडर वे सब टूल देता है जो एक एप्लीकेशन को बनाने के लिए चाहिए होता है, जैसे की डवलपमेंट टूल, कोडिंग प्लेटफार्म, और ऑपरेटिंग सिस्टम। ये सब इंटरनेट पर ऑनलाइन देते है।
इसमें आपको तैयार प्लेटफार्म मिल जाते है। इसमें कोई भी हार्डवेयर या सॉफ्टवेयर खरीदने की जरुरत नहीं होती है।
इसमें आप ऑनलाइन प्रोग्रामिंग, वेबसाइट होस्टिंग, ऑनलाइन सर्वर, ऑनलाइन डेटाबेस, इत्यादि जैसी सर्विसेस को काम में ले सकते है। इस तरह की कंपनियों को महीने या साल के हिसाब से पैसे देने होते है, ताकि आपकी सर्विस चलती रहे, बिलकुल एक सब्सक्रिप्शन पैक की तरह।
Amazon S3, Windows Azure, Rackspace, Google Compute Engine, इत्यादि कंपनियां इस तरह की सर्विसेस प्रोवाइड कराती है।
- सॉफ्टवेयर-एज़-ए-सर्विस (Saas) | Software-as-a-Service (Saas)
सॉफ्टवेयर-एज़-ए-सर्विस (Saas) यूजर को इंटरनेट पर क्लाउड बेस्ड एप्लिकेशन से कनेक्ट होने और इस्तेमाल करने की सुविधा देता है।
यानी कि इसमें आपको कोई सी भी एप्लीकेशन अपने कंप्यूटर में इनस्टॉल करने की जरूरत नहीं होती है। सभी एप्लीकेशन ऑनलाइन ही काम करती है और उसके लिए क्लाउड सर्विस प्रोवाइडर को उतनी ही पेमेंट करनी होती है जितना इस्तेमाल करना चाहते है।
इसके लिए कोई भी सॉफ्टवेयर खरीदने की जरूरत नहीं होती है। सभी एप्लीकेशन ऑनलाइन मिल जाती है। जिससे सारा काम ऑनलाइन ही हो जाता है।
उदाहरण के लिए Microsoft Office 365, Google Doc, G-Suite, Online Games, फेसबुक, ईमेल, इत्यादि।
पहले, IaaS, PaaS और SaaS क्लाउड कंप्यूटिंग के तीन मुख्य मॉडल होते थे, और सभी क्लाउड सर्विस इन केटेगरी में होती थी। हालाँकि, हाल के कुछ वर्षों में एक चौथा मॉडल सामने आया है। जिसे फंक्शन-एज-ए-सर्विस (FaaS) के नाम जानते है। चलिए इसके बारे में भी जानते है।
- फंक्शन-एज-ए-सर्विस (FaaS) | Function-as-a-Service (FaaS)
फंक्शन-एज-ए-सर्विस (FaaS), को सर्वरलेस कंप्यूटिंग के नाम से भी जाना जाता है। FaaS क्लाउड एप्लिकेशन को छोटे हिस्सों में बाँट देता है, इससे जब जिस हिस्से की जरुरत होती है वो तब ही चलेगा।
उदाहरण के लिए, किरायेदार को केवल रात के खाने के समय का पेमेंट करना होता है, बेडरूम में जब सो रहे होते हैं, कमरे में टीवी देखने का, और जब किरायेदार जिन कमरों या जिन सुविधाओं का उपयोग नहीं कर रहे हैं, तो उन्हें उन का किराया देने की जरुरत नहीं है।
FaaS या सर्वरलेस एप्लिकेशन को काम करने के लिए होस्ट सर्वर की जरुरत नहीं होती है। उन्हें “सर्वरलेस” इस लिए कहाँ जाता है क्योंकि इसका खुद का कोई सर्वर (dedicated server) नहीं होता, इसलिए यूजर को उसे मैनेज करने की जरुरत नहीं होती है। जिसकी वजह से यूजर आसानी से कोडिंग या दूसरे काम कर पता है।
क्लाउड कंप्यूटिंग की विशेषताएँ
- ऑन-डिमांड सेल्फ-सर्विसेस:
ये क्लाउड कम्प्यूटिंग की इम्पोर्टेन्ट और वैल्युएबल फीचर में से एक है क्योंकि यूजर सर्वर अपटाइम, कैपेबिलिटी और अलोकेटेड नेटवर्क स्टोरेज को लगातार मॉनिटर कर सकता है। इस सुविधा के साथ, यूजर कंप्यूटिंग रिसोर्सेस की निगरानी आसानी से कर सकता है।
- बड़े लेवल पर नेटवर्क का उपयोग:
यूजर डेटा को क्लाउड पर कही से भी अपलोड और डाउनलोड कर सकता है, किसी भी डिवाइस से और कहीं से भी इंटरनेट कनेक्शन की मदद से। ये क्षमता पूरे नेटवर्क पर उपलब्ध हैं और इंटरनेट की मदद से एक्सेस की जाती हैं।
- तेजी से विस्तार:
कम्प्यूटिंग सर्विस में कई IT रिसोर्सेज होते है जो कि जल्दी और जरुरत के हिसाब से सर्विस देते है। जब भी यूजर को सर्विस की जरुरत होती है, तो ये उसे उस समय उपलब्ध कराते है और जैसे ही जरुरत समाप्त हो जाती है, उस रिसोर्स को उसी समय रोक दिया जाता है।
- रिसोर्सेज पूलिंग:
पब्लिक क्लाउड प्रोवाइडर एक ही समय में ज्यादा यूजर तक अपनी सर्विस पहुंचाने के लिए multi-tenant architecture का इस्तेमाल करते हैं। इसमें कस्टमर की डिमांड के हिसाब से कई फिजिकल और वर्चुअल रिसोर्सेस को जोड़ा और हटाया जाता है।
- आसान रखरखाव:
सर्वर आसानी से मैंटेन होता हैं और डाउनटाइम बहुत कम होता है और कई बार तो डाउनटाइम होता ही नहीं है। क्लाउड कम्प्यूटिंग को हर बार अपडेट किया जाता है और धीरे-धीरे ये बेहतर बनती जा रही है। अपडेट होने से, अब ये कई डिवाइस को सपोर्ट करता है और पुराने प्लेटफार्म के मुकाबले और ज्यादा तेजी से काम करता है।
- उपलब्धता:
क्लाउड की कैपेबिलिटीज को मॉडिफाई किया जा सकता है, उसके इस्तेमाल के अनुसार इसे बढ़ाया भी जा सकता है। यह स्टोरेज उपयोग की जाँच करता है और यूजर को बहुत कम कीमत में क्लाउड स्टोरेज उपलब्ध कराता है।
- ऑटोमेटिक सिस्टम:
क्लाउड कंप्यूटिंग ऑटोमेटिक जरुरी डेटा को एनालाइज करता है और सर्विसेस को उसकी क्षमता के आधार पर मापता है। हम अपने इस्तेमाल को मॉनिटर, कंट्रोल और रिपोर्ट के हिसाब से देख सकते हैं। ये फीचर होस्ट और कस्टमर दोनों के लिए उपलब्ध होता है।
- एक बार का इन्वेस्टमेंट:
ये एक बार का निवेश है क्योंकि कंपनी (होस्ट) को काफी बड़े लेवल पर इंफ्रास्ट्रक्चर को खरीदना पड़ता है और इसे कई छोटे छोटेहिस्सों में बाँट दिया जाता है और कई यूजर को इस्तेमाल करने के लिए दे किया जाता है यूजर की मासिक या सालाना खर्चे को बचाती हैं। केवल उतनी ही राशि खर्च की जाती है जितने की जरुरत होती है।
- सुरक्षा:
क्लाउड सिक्योरिटी, क्लाउड कंप्यूटिंग की मुख्य विशेषताओं में से एक है। ये स्टोर किया गया डेटा का एक कॉपी बनाता है ताकि सर्वर के ख़राब होने पर भी डेटा सुरक्षित रहे। डेटा को स्टोरेज डिवाइस में स्टोर किया जाता है, जिसे किसी के भी जरिये हैक और इस्तेमाल नहीं किया जा सके। स्टोरेज सर्विस काफी तेज और भरोसेमंद होती है।
- Pay-as-you-go:
क्लाउड कंप्यूटिंग में, यूजर को केवल सर्विस या उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए स्टोरेज के लिए ही पेमेंट करना होता है। इसके अलावा कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं है। इसलिए यह सर्विस फायदेमंद होती है और ज्यादातर कुछ सर्विस प्रोवाइडर स्टोरेज मुफ्त में भी दे देते है।
क्लाउड कंप्यूटिंग के फायदे और नुकसान
क्लाउड कंप्यूटिंग के फायदे
- इसे कभी भी, कहीं से भी और किसी भी डिवाइस के जरिए आसानी से एक्सेस किया जा सकता है। जैसे की लैपटॉप, कंप्यूटर, मोबाइल, टेबलेट इत्यादि।
- क्लाउड होस्टिंग यूजर को काम करने के लिए ऑनलाइन एप्लीकेशन देता है, जिससे यूजर को किसी भी तरह के बैकएंड की तकनीक जानकारी की जरुरत नहीं होती और वो आसानी से अपना काम कर पता है।
- क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर आपकी कंपनी की प्रोडक्टिविटी और कार्य क्षमता को अधिक बड़ा देता है। ये ऑर्गेनाइजेशन को ऑनलाइन इन्फ्रास्ट्रक्चर देता है जिससे उन्हें अलग से कुछ भी खरीदना नहीं होता है और सारा काम ऑनलाइन ही हो जाता है वो भी कम पैसों में।
- ऑनलाइन होने की वजह से अपने काम को आसानी से किसी के भी साथ शेयर कर सकते है और साथ ही फाइल एडिट करने का एक्सेस भी दे सकते है।
- सब कुछ क्लाउड में होस्ट किया जाएगा, इसलिए यूजर को फिजिकल स्टोरेज सेंटर की आवश्यकता नहीं है।
- काफी सारी सर्विसेस आपको फ्री में भी देते है। जैसे की गूगल फोटोज, गूगल ड्राइव, फ्लिकर, Canva, होस्टिंगर इत्यादि।
- जितना रिसोर्सेज या सर्विस काम में लेते है केवल उतना ही पेमेंट करना होता है।
- अपनी जरुरत के हिसाब से सर्विसेस को जोड़ या हटा सकते है साथ ही आसानी से कस्टमाइज भी किया जा सकता है।
- ये सर्विसेस फ़ास्ट और सुरक्षित होती है और सर्वर डाउनटाइम भी काफी कम होता है।
- ये एन्क्रिप्शन और टु-फैक्टर ऑथेंटिकेशन सिक्योरिटी का इस्तेमाल करती है जिससे हैक या डाटा चोरी होने का खतरा ना के बराबर हो जाता है।
- डाटा को खुद ही मैनेज कर सकते है। किसी को भी अलग से नियुक्त करने की जरुरत नहीं है।
क्लाउड कंप्यूटिंग के नुकसान
- क्लाउड कंप्यूटिंग इंटरनेट के जरिये ही काम कर पाता है। अगर आप किसी ऐसी जगह पर है जहां पर इंटरनेट नहीं है या काफी धीमा चल रहा है, तो आप इसे इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे।
- ज्यादातर फ्री सर्विस होती है लेकिन उनमे भी लिमिट होती है और पूरा एक्सेस करने के लिए इनका सब्सक्रिप्शन प्लान खरीदना पड़ता है। हर महीने या साल के हिसाब से इन्हे पेमेंट करनी होती है।
- बैकएन्ड में क्या प्रोसेस होता है हमे ना ही पता होता है और ना ही उस पर हमारा कोई कंट्रोल होता है। पुरे बैकएन्ड पर क्लाउड प्रोवाइडर का ही कंट्रोल होता है।
- सभी क्लाउड होस्टिंग कंपनियां अपनी सर्विस को कस्टमाइज करने का ऑप्शन नहीं देती है।
- हैकर के जरिये हैक होने का खतरा बना रहता है। हालांकि, उनकी सुरक्षा काफी मजबूत होती है, लेकिन 100% सुरक्षित कुछ भी नहीं होता। जिस क्लाउड होस्टिंग सर्वर पर अपने फाइल अपलोड की है अगर वो हैक हो जाता है तो आपका डाटा सुरक्षित नहीं रहेगा।
क्लाउड कंप्यूटिंग का मुख्य टारगेट है की यूजर बिना किसी तकनीकी जानकारी के इन सभी सुविधा का लाभ उठा सके। बिना किसी IT या तकनीकी समस्या में पड़े यूजर का ध्यान अपने बिज़नेस में आसानी से लगाना सके।
क्लाउड कंप्यूटिंग में मुख्य तकनीक वर्चुअलाइजेशन है। वर्चुअलाइजेशन सॉफ्टवेयर, फिजिकल कंप्यूटिंग डिवाइस को एक या अधिक वर्चुअल डिवाइसो में बाँट देता है, जिनमें से हर एक को आसानी से इस तरह से काम में लिया जा सकता है जैसे आप किसी दूसरे कंप्यूटर पर काम कर रहे हो।
वर्चुअलाइजेशन के होने अलग से सिस्टम की जरुरत नहीं होती। जिसके जरिए क्लाउड कंप्यूटिंग में एक ही होस्ट में कई अलग अलग टास्क को आसानी से किया जा सकता है।
वर्चुअलाइजेशन IT ऑपरेशन को तेज कर देता है और इंफ्रास्ट्रक्चर के इस्तेमाल को बड़ा देता है जिससे खर्चा कम हो जाता है।
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मेरा नाम धर्मेंद्र मीणा है, मुझे तकनीक (कंप्यूटर, लैपटॉप, स्मार्टफोन्स, सॉफ्टवेयर, इंटरनेट, इत्यादि) से सम्बन्धी नया सीखा अच्छा लगता है। जो भी में सीखता हु वो मुझे दुसरो के साथ शेयर करना अच्छा लगता है। इस ब्लॉग को शुरू करने का मेरा मकसद जानकारी को ज्यादा से ज्यादा लोगो तक हिंदी में पहुंचना है।
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